नमक- इतना ज़रूरी तो नहीं .....

Thursday, June 16, 2011


आज चारों तरफ नमक के लिये मारामारी मची हुई है, कोई बाज़ार से8 रुपये किलो ला रहा है कोई 25 रुपये किलो, हालांकि छोटे शहरों मे तो 5 रुपये तक भी मिल जाता है। भारत जैसे शिक्षित देश में तो लोग 10-10 किलो नमक भविष्य के लिये स्टाक करके निश्चंत हो जाते हैं।

जिस नमक के लिये इतनी आपाधापी, उसके बारे मे कभी हमने सोचा कि यह हमारे लिये कितना लाभकारी है और कितना हानिकारक शायद नहीं.......... आइये नमक के बारे मे कुछ विशेष तथ्यों से आपको अवगत करायें।

पश्चिमी देशों में विशेषकर स्वास्थ्य सुधारने के इच्छुक लोगों को डाक्टर नमक छोड़ने की सलाह देने मे बिल्कुल नहीं हिचकते, वे तो यहाँ तक कह देते है कि सामान्य बीमारियाँ जैसे सर्दी, ज़ुकाम, ब्रोंकाइटिस तथा कुछ चमड़ी के रोग केवल नमक छोड़्ने से ही बिना दवाई के ठीक हो जाते हैं।

उत्तरी जापान के लोग बहुत नमक खाते हैं.उनमें ब्रेन स्ट्रोक से मरने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है। इसके विपरीत दक्षिण पेसिफिक के आदिवासी नमक कभी नहीं खाते। उन्हे ब्लड प्रेशर और ब्रेन स्ट्रोक की शिकायत कभी नहीं होती।

अमेरिका में हब्शी लोग अपने भोजन में बहुत अधिक नमक का सेवन करते हैं उनमें उसी क्षेत्र के लोगों की अपेक्षा तीन गुना अधिक रक्त चाप होता है।

प्रत्येक व्यक्ति के प्रवाहित रक्त में 30 ग्राम नमक होता है। शरीर की अन्य जीवित कोशिकाओं तथा एंजाइम्स आदि में कुल मिलाकर 300 ग्राम तक नमक होता है। एक ओर ये बात सही है कि ह्रदय और गुर्दे की बीमरियों के लिये नमक हानिकारक है तो अन्य कई लम्बे समय तक चलने वली बीमारियों में औषधि रूप में नमक देने पर आशातीत लाभ मिलता है। उल्टी,दस्त जेसे जलाभाव करने वाले रोगों में सेलाइन वाटर बिना चढ़ाये काम ही नहीं चलता। सोवियत डाक्टरों के अनुसार मेहनती लोगों में आराम तलब लोगों की अपेक्षा नमक का दुष्प्रभाव कम होता है।

विश्व में जाने कितने लोग रात को नींद ना आने के कारण बेचैन रहते हैं। प्रो0 कोराल्ट ने इस समस्या का 5 साल तक अध्य्यन किया और एक फैसले पर पहुंचे कि जो लोग नमक का अधिक प्रयोग करते हैं या चीनी अधिक खाते हैं उन्हें अनिद्रा रोग जकड़ लेता है और पूरी पूरी रात करवटें बदलते रहते हैं। इसलिये इस रोग के रोगियों को रात के समय केवल फलाहार,उबली हुई सब्जी तथा नमक का परित्याग करने को कहा तो कुछ ही दिनों में बहुत ही अच्छी नींद आने लगी। नमक कम करने से मोटापा भी कम होने लगता है। यूँ शरीर में पहले से ही अनेक प्रकार के नमक विद्यमान हैं। उनकी पूर्ति के लिये आहार में नमक की मात्रा होना ज़रूरी है लकिन वनस्पतिक नमक की कि खनिज नमक की। फल, शाक, सब्जी, दूध, अन्न, आदि में स्वाभाविक रूप से लवणों की मात्रा भरी रहती है जो शरीर के लिये आवश्यक भी हैं और उतना सहज रूप से हमारे शरीर को मिलता भी रहता है। इसके लिये बाजारू नमक की अवश्यकता ही नहीं।

रासायनिक द्रष्टिकोण से खनिज नमक का सूत्र सोडियम क्लोराइड है, ये हल्का विष है इसमें पोषण का गुण बिल्कुल नहीं है। क्लोरीन एक ज़हरीली गैस है। जिसका एक हल्का सा झोंका मनुष्य को 24 घंटे तक बेहोश करने के लिये पर्याप्त है। थोडी सी अधिक मात्रा से व्यक्ति दूसरे लोक को भी पलायन कर सकता है। इसके योजकों [ NaCl आदि ] को आहार के रूप में लेने से पूरी पाचन प्रणाली की श्लेष्मिक झिल्ली को क्षति पहुँचती तथा शरीर के केल्शियम का भी क्षरण होता है जिससे शरीर में पक्षाघात और मिरगी के रोगों की सम्भावना अधिक होती है।

अब यहाँ एक प्रश्न उठता है कि यदि नमक एक विष है तो फिर शरीर पर इसका कुप्रभाव द्रष्टिगोचर क्यों नहीं होता तो इसका एक बहुत बडा कारण यह है कि हम सैकड़ों वर्षों से नमक का प्रयोग करते रहे हैं, हमारे शरीर की कोशिकायें उसकी अभ्यस्त हो गयी हैं फिर मानव का शरीर जिस अधिक मात्रा में पहँचे हुये नमक को बर्दाश्त नहीं कर पाता उसे पसीने के द्वारा या पेशाब के द्वारा बाहर विसर्जित कर देता है। फिर भी इसका प्रभाव किसी किसी रूप में तो होना ही है और होता भी है। रक्त विकार, चर्म रोग ह्रदय रोग तथा आमाशय के रोग इन सब का कारण नमक ही है, इसलिये चिकित्सक इन रोगों का इलाज करते समय यही सलाह देते हैं कि बस नमक से परहेज रखें।

डा0 प्रीमकाट ने मेक्सिको के स्वास्थ्य का इतिहास लिखते हुये बताया कि प्राचीन काल में इस देश के निवासी नमक का प्रयोग बिल्कुल नहीं करते थे तब उनकी परिश्रम करने की क्षमता बहुत थी, बाद में वे नमक खाने के आदी हो गये और कमजोर, बीमार रहने लगे। डा0 सोलन का कथन है कि नमक को पाचक कहना गलत है। इससे तो पाचन शक्ति को नुकसान होता है, जिन्हें अधिक नमक खाने की आदत होती है उनकी माँस पेशियाँ ढीली हो जाती हैं और उन्हें बुढापा भी जल्दी आता है। चीन के अनुभवी चिकित्सक डा0सी.हेमन लिखते हैं कि नमक के घोल को पीकर आत्म हत्या करना चीन मे एक साधारण तरीका है, जिसकी चिकित्सा करना अच्छे डाक्टरों के लिये भी जटिल कार्य के समान है।

भारतीय योग ग्रंथों में जहाँ आहार शुद्धि की बात आती है वहाँ प्रत्याहार साधनाके अंतर्गत नमक का निषेध बताया जाता है। धार्मिक द्रष्टि से नमक का त्याग एक व्रत के रूप में बताया गया है। विज्ञान ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नमक शरीर के लिये इतना ज़रूरी तो नहीं जितना आम आदमी समझता है।

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