कालेजों में, रेस्टोरेंटों में, नाच घरों में, लड़कों के साथ लड़कियाँ भी सिगरेट पीती हुयी आसानी से देखी जा सकती हैं,न जाने यह दूसरों की नकल करने की आदत हम भारत वासियों को कहाँ ले जायेगी?
अंदरूनी अंगों पर प्रभाव-
जो स्त्रियाँ सिगरेट पीती हैं वे न अपने भविष्य को खराब करती हैं अपितु आने वाली संतानों के भविष्य और स्वास्थ्य को भी नष्ट करती हैं। जवान लडकियों को इस व्यसन से बचना चाहिये, इसको पीने से स्मरण शक्ति क्षीण होने लगती है, जो समय अध्ययन करने का है, प्रगति करके अच्छे ओहदे पर स्थापित होने का है, ऐसे व्यसनों में पड़ कर उनके अध्ययन पर प्रभाव पड़ने लगता है। सिगरेट में तम्बाखू होता है, तम्बाखू में निकोटिन नामक विष। यह निकोटिन इतना विषैला होता है कि यदि किसी स्वस्थ कुत्ते को एक ग्रेन का दसवां हिस्सा खिला दिया जाये तो वह कुत्ता कुछ ही क्षणों में मर जायेगा। यह निकोटिन नामक विष स्त्री के जननांगों पर इतना बुरा प्रभाव डालता है कि उसे अपने किये का पछ्तावा पूरी ज़िन्दगी करना पडता है। जो स्त्री धूम्र पान करती है या तम्बाखू या गुटखे का किसी भी रूप में सेवन करती है उसका गर्भाशय इतना कमज़ोर हो जाता है कि उसमें गर्भ धारण करने की क्षमता लगभग समाप्त सी होने लगती है। यदि किसी भी प्रकार गर्भ धारण हो भी जाये तो वह पूरे समय टिक नहीं पाता परिणामत: स्त्री को एबार्शन जैसी विकट परिस्थिति से गुजरना पडता है। जो स्त्री गर्भावस्था के दौरान भी धूम्रपान से बाज नहीं आतीं तो उनके गर्भस्थ शिशु की नलियों सिगरेट के धुयें का निकोटिन, कोलतार, आर्सेनिक, और कोयले की गैस पहुँचती है जिससे बालक के जन्म के समय प्रसूता को तो अधिक कष्ट होता ही है नवजात शिशु भी अस्वस्थ पैदा होता है और अल्पायु में ही उसकी मृत्यु का भय रहता है। यदि वह जीवित भी रह गया तो या तो वह अंग विशेष से हाथ धो बैठता है या आजीवन पेट की अनेकों बीमारियों से ग्रसित रहता है।
वैज्ञानिकों ने चूहों को सिगरेट के धुयें के पास रख कर शोध किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उन चूहों की प्रजनन शक्ति क्षीण हो गयी है, उनकी मादाओं में बांझपन पैदा हो गया है, गर्भपात हुये और उनके आँख फेफड़े कमज़ोर हो गये। कई तो उनमें से अंधे होकर शीघ्र मर भी गये। इसके विपरीत कुछ चूहों को जैसे ही सिगरेट के धुयें के प्रभाव से अलग किये गये तो वो पुन: स्वस्थ हो गये।
जो स्त्रियाँ सिगरेट और शराब दोनों का ही सेवन करती हैं उन्हें गर्भाशय का केंसर होने की अत्यधिक सम्भावना रहती है। जो स्त्री या पुरुष बहुत सिगरेट पीते हैं उनके पैरों की शक्ति क्षीण हो जाती है और कानों में बहरापन हो जाता है।
सिगरेट के धुयें के बार बार नाक के द्वारा बाहर निकालने के कारण नाक की अन्दर की झिल्ली पर कार्बन की मोटी परत जम जाती है जिससे कि उसके अन्दर बिछी हुयी तंत्रिकायें अपना संज्ञान खोने लगतीं हैं परिणामत: सूँघने की शक्ति जाती रहती है।
इसी प्रकार धूम्रपान करने वालों की पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है और वह कब्ज तथा अपच की बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं। निकोटिन से ब्लड प्रेशर बढने लगता है। रक्त नलिकाओं में रक्त का स्वाभाविक संचार मंद पड जाता है और त्वचा का सेंशेशन कम होने लगता है जिसके कारण चर्म रोगों का प्रादुर्भाव होने लगता है।
धूम्रपान करने वालों को अक्सर खुल्ल-खुल्ल करके तेज़ तेज़ खाँसते देखा होगा, ये जीर्ण खांसी का रोग निकोटिन के कारण ही होता है। यही रोग बढते बढते दमा, श्वाँस और टी.बी. का रूप धारण कर लेता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य--
भारत में मुँह, जीभ ऊपरी साँस तथा भोजन नली का केंसर सारे विश्व की तुलना में अधिक पाया जाता है। इसका कारण इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका लिखता है कि यहाँ तम्बाखू चबाना, पान में ज़र्दा, बीड़ी, अथवा सिगरेट को उल्टी दिशा में पीना (revars smoking) एक साधारण बात है।
डा0 रिचर्ड्सन लिखते हैं कि धूम्रपायी का दिमाग सुस्त पड़ जाता है, उसमें रक्त संचार नहीं हो पाता, खून पतला हो जाता है, फेफड़े कमज़ोर तथा निर्जीव हो जाते हैं।
प्रसिद्ध चिकित्सक डा0 फूट कहते हैं जिसे नपुंसक बनना हो वह तम्बाखू का स्तेमाल करे। डा0 रश कहते हैं कि तम्बाखू के प्रयोग से दाँत कमज़ोर पड जाते हैं तथा सूख कर गिरने लगते हैं। डा0 अलकार कहते हैं कि तम्बाखू खाने पीने या सूँघने से आँखों की ज्योति कम हो जाती है, नींद भी अच्छी नहीं आती।
धूम्रपान कैसे छूटे ?—
इस सम्बन्ध में डा0 सुशीला नायर का मत है कि धूम्र पान केवल द्र्ढ निश्चय द्वारा ही छोड़ा जा सकता है। इसे एक दम ही छोड़्ना चाहिये, धीरे धीरे यह आदत छूटने वाली नहीं। जिनका संकल्प बल कम होता है उनको इसे छोड़ने मे विशेष कठिनाई का सामना करना पडता है। जो लोग शौच जाने से पूर्व इसका सेवन करना आवश्यक मानते हैं या भोजन के पश्चात धूम्रपान ना करें तो पेट फूलने लगेगा या धूम्रपान न करें तो आलस्य आ जाता है तो ऐसे लोगों के लिये बहुत थोड़े खर्च से तम्बाखू की जगह अन्य वस्तुओं का प्रयोग कर इससे पिंड छुड़ाया जा सकता है। सौंफ अजवायन पाव-पाव भर, काला नमक तीन छटाँक और चार बड़े नीबू। पहले काले नमक को बारीक पीस लें फिर उसमें चारों नीबू निचोड़ लें, फिर साफ की हुई सोंफ तथा अजवाइन में डाल कर एक कलई दार बर्तन में अच्छी तरह मिलाकर आग पर रख कर धीरे-धीरे भून लें, यह एक प्रकार से चूरन सा जो दूर से सुरती जैसा ही लगेगा, बन जायेगा। एक डिबिया मे भर कर रख लें जब-जब एसा लगे कि तम्बाखू की तलब लग रही है या सिग्रेट या बीड़ी पीनी आवश्यक है ,थोड़ा सा अपने मुँह में डाल लें। कुछ ही समय में बिना किसी असुविधा के धूम्रपान या तम्बाखू खाने की आदत से छुट्कारा पाया जा सकता है।
धूम्रपान के विषय में चरक तथा सुश्रुत जेसे हजारों वर्ष पूर्व के ग्रंथों मे विधान है लेकिन वहाँ इसका औषधि रूप में वर्णन है न कि व्यसन के रूप में। जैसे कहा गया गया है कि आम के सूखे पत्तों को चिलम जैसे किसी उपकरण में रख कर धुआँ खींचने से गले के रोगों मे आराम मिलता है। दमा तथा श्वास के रोगों में वासा या अडूसा के सुखे पत्तों को चिलम में रख कर पीना लाभप्रद माना गया है।
धूम्रपान छोड़ने से प्रतिमाह औसतन 100 से 300 रुपये तक की बचत के अलावा खोये हुये स्वास्थ्य की प्राप्ति,लौटा हुआ आत्म विश्वास, मन की प्रसन्नता ये सब मनुष्य के लिये ऐसे अमूल्य उपहार हैं जिन्हें हर धूम्रपान रोगी को प्राप्त करने चाहिये। स्त्रियों को तो विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखना चाहिये क्यों कि वे तो जननी भी हैं, उनके सद आचरण से हमारी पीढ़ी स्वस्थ नीरोग तथा बलिष्ठ होगी साथ ही उनका स्वयं का स्वास्थ्य भी संतानोत्पत्ति के लिये अनुकूल रहेगा। हालाँकि आज भी पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का धूम्रपान करने का प्रतिशत कम है फिर भी आधुनाकिता की होड़ में कहीं हमारी पीढ़ी भटक कर अपना और देश का भविष्य न बरबाद कर दे, इसी बात का भय है।
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