बच्चों में भी हो सकता है- एड्स रोग...

Saturday, June 18, 2011




आमतौर पर हमारे समाज में एड्स नामक भयानक रोग के विषय मे जो भ्रांतियाँ फैली हुई हैं उन्हें हम आज तक दूर नही कर पाये हैं। मसलन एड्स तो असुरक्षित यौन सम्पर्क से फैलने वाली बीमारी है या रोगी के बीमार होने पर एड्स संक्रमित रोगी की नीडिल प्रयोग करने से यह बीमारी संक्रमित हो सकती है। अधिकतर लोग इसे युवाओं में फैलाने वाली बीमारी समझते हैं। जब कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

# यह भयावह बीमारी बच्चों में भी हो सकती है कारण एच.आई.वी.-1 नामक वायरस ही है जो माँ के द्वारा नवजात शिशुओं में आता है।

# यह वायरस रक्त एवं रक्त के अन्य अंगों, अवयवों में पहुचने पर ही होता है।

# जिन बच्चौं को होमोफीलिया, थैलेसीमिया जैसी बीमरियाँ होती है। उनमें बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है जिससे ये वायरस आसानी से बच्चे के शरीर में संक्रमित हो जाता है।

कैसे पहचानें ?

1. जो बच्चे सबकुछ खाते-पीते हुये भी कमजोर हों, पनप नही पा रहे हों तथा साँस लेने मे अचानक ही परेशानी आ गयी हो,

2. पेशाब में लालामी(रक्त का आना) हो तथा प्रोटीन अधिक जा रही हो,

3. मुँह में सफेद छाले हो गये हों और ठीक नहीं हो पा रहे हों,

4. दस्तों को एक माह से अधिक हो गया हो,

5. दिल ठीक से काम नही कर रहा हो,

6. लिवर,तिल्ली के साथ साथ लसीक ग्रन्थियाँ बढ गयीं हों,

7. साँस फूल रही हो तथा बार बार रोगाणुओं का संक्रमण हो रहा हो,

8. बार-बार कान से मवाद आ रहा हो और ठीक होने का नाम न ले रहा हो।

ये सब एड्स की आशंकाओ के प्रारम्भिक लक्षण हैं। कुछ समय पश्चात बच्चों में टी.बी., केन्डिडा, मलेरिया, टोक्सोप्लाजमा जैसे संक्रमणों के होने से निमोनिया, सेप्टिसीमिया, साइनूसाइटिस, साँस फूलना लगातार, खाँसी का रहना आदि बीमारियाँ हो जाती हैं जो लगातार महीनों दवाई चलने के बावजूद प्राणघातक होती हैं। क्योंकि इस बीमारी के संक्रमण से रक्त में लिम्फोसाइट्स की संख्या में तेजी से कमी आ जाती है जिससे शरीर में लड़ने की ताकत धीरे-धीरे समाप्त होती चली जाती है।

रोकने के उपाय-

· बच्चों में सर्वप्रथम एच.आई.वी. वायरस की जाँच होना उनकी प्राणरक्षा के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

· बच्चों के किसी भी बीमारी में कोई भी इंजक्शन लगायें सदैव डिस्पोजल सिरिंज से ही लगायें इससे एड्स होने की एक महत्वपूर्ण शंका निर्मूल हो जाती है।

· जिस माँ ने गर्भ धारण कर लिया है उसका परम कर्तव्य है कि वह अपने तथा गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के लिये आरम्भ में ही एच.आई.वी.-1 के लिये खून की जांच करायें।

· यदि वह एच.आई.वी.-1 पॉजीटिव है तो एक विशेष जिडोमेंब्यूडिन नामक दवा दिन में पाँच बार लगभग पाँच-पाँच घण्टे के अंतराल से रोज़ाना चौदहवें सप्ताह से डिलीवरी होने तक एवं बच्चा जब तक 45 दिन का ना हो जाये तब तक देने से 92% एड्स की तीव्रता के अवसर कम हो जाते हैं।

· यदि डिलीवरी के समय ही पता चले तो यही दवा ड्रिप में डालकर जब तक डिलीवरी न हो जाये तब तक दें। किसी भी स्थिति में नवजात शिशु को इस दवा की पहली ख़ुराक़ पैदा होने के 12 घण्टे के अन्दर दे दी जाये क्योंकि 24 घण्टे बाद दवा देने से कोई फायदा नही होगा।

· जिन बच्चों में रक्ताल्पता(एनीमिया) के कारण बार बार खून चढ़ाने की ज़रूरत होती है। उन्में बी.सी.जी., हिपेटाइटिस-बी, न्योमोकोकल एवं मेनिंगोकोकल टीके लगवाना बहुत आवश्यक है।

· यदि बच्चे के अन्दर किसी भी अवस्था या आयुवर्ग में एड्स के लक्षण कीटाणु, एंटीबॉडी पाई जायें तुरंत बड़े से बड़े अस्पताल जहाँ इसका उपचार होता है,वहाँ दिखायें। ध्यान रहे आपकी थोड़ी सी लापरवाही आपके लाडले के प्राण ले सकती है।

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