आज विश्व के हर कौने से वैज्ञानिक व डाक्टर यह चेतावनी दे रहे हैं कि माँसाहार कैंसर आदि असाध्य रोगों को देकर आयु को क्षीण करता है और शाकाहार अधिक पौष्टिकता व रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, फिर भी मानव यदि अंधी नकल या आधुनिकता की होड में माँसाहार कर के अपना सर्वनाश करे तो ये उसका दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।
जीव या पशु संरचना पर ध्यान देने पर हम देखते हैं कि सर्वाधिक शक्तिशाली, परिश्रमी, व अधिक सहनशीलता वाले पशु जो लगातार कई दिन तक काम कर सकते हैं, जैसे हाथी, घोडा, बैल, ऊँट, आदि सब शाकाहारी होते हैं। इग्लेंड में परीक्षण करके देखा गया है कि स्वाभाविक माँसाहारी शिकारी कुत्तों को भी जब शाकाहार पर रखा गया तो उनकी बर्दाश्त शक्ति व क्षमता में वृद्धि हुई।
अफ्रीकन रिसर्च फाउंडेशन के डा0अन्ना स्पोरी के अनुसार मसाई जनजाति के लोग जो माँसाहार करते हैं वे यदि दही खाते हैं तो उनका कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है।
शाकाहारी भोजन के गुणों को जानकर अब पाश्चात्य देशों में शाकाहार आन्दोलन तेज हो रहा है। अमेरिका में सलाद बार अत्यधिक लोकप्रिय हो रहे हैं, जहाँ से ग्राहक सलाद की भरी हुई प्लेटें व बन्द डिब्बे घर ले जा सकते हैं।
सांध्य टाइम्स, नई दिल्ली 19 फरवरी 1990; के अनुसार भोजन पर अनुसन्धान कर रहे अमेरिका के वेज्ञानिकों ने वर्षों की खोज के बाद, फलों, सब्जियों, दूध और खाद्यान्नों में पाये जाने वाले पोषक तत्वों का पता लगा लिया है और भोजन से ही कैंसर, हृदयरोग आदि असाध्य रोगों की चिकित्सा की दिशा में काम कर रहे हैं। कई डाक्टरों ने तो सलाह दी है कि अंगूर, पपीता, आम, खरबूजा, टमाटर, हरी पत्तेदार सब्जियाँ खाने से भोजन की नली का केंसर होने की संभावना कम हो जाती है। केंसर का एक कारण माँसाहार भी है। दूध पीने से आँत के केंसर से बचा जा सकता है। जो महिलायें शाकाहारी और रेशेदार भोजन करती हैं उन्हें स्तन केंसर नहीं होता। हावर्ड के एक अध्ययन में पशु माँस और गर्भाशय केंसर में सम्बन्ध स्थापित किया गया है।
जर्मनी की इंस्टीट्यूट आफ सोशल मेडिसन एंड एपीडीमिओलोजी द्वारा वर्ष 1985 में प्रारम्भ किये गये सर्वेक्षण की अब तक की रिपोर्ट के अनुसार शाकाहारियों के रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा कम होती है, उनके गुर्दे बेहतर कार्य करते हैं, रक्तचाप सामान्य, आदर्श कोलेस्ट्रोल सीमा में रहता है। एसे व्यक्तियों का प्रतिशत माँसाहारियों की अपेक्षा बहुत अधिक रहता है। शाकाहार उन्हें स्वस्थ और नीरोग बनाता है।
ग्वालियर के दो शोधकर्ताओं, डा0 जसराज सिंह और सी0के0 डेवास ने ग्वालियर जेल के 400 बन्दियों पर शोध कर ये बताया कि 250 माँसाहारियों में से 85% चिड़चिड़े स्वभाव के व झगड़ालू निकले जब कि शेष 150 शाकाहारी बन्दियों में से 90% शांत स्वभाव और खुश मिजाज थे। अकेले अमरीका में 40000 से अधिक केस प्रति वर्ष ऐसे आते हैं जो रोग ग्रस्त अन्डे व माँस खाने से होते हैं।
सामान्य तौर पर एक बात जानने की कोशिश करें कि जब पशु बूचड़खाने में कसाई के द्वारा अपनी मौत को पास आते देखता है तो वह डर और दहशत से काँप उठता है। मृत्यु को समीप भाँप कर वह एक दो दिन पहले से ही खाना पीना छोड़ देता है। डर व घबराहट में उसका कुछ मल बाहर निकल जाता है। मल जब खून में जाता है तो खून जहरीला व नुकसान दायक बन जाता है। मौत से पहले नि;सहाय पशु आत्म रक्षा के लिये पुरुषार्थ करता है, छटपटाता है। पुरुषार्थ बेकार होने पर उसका डर, आवेश बढ़ जाता है। गुस्से से आँखें लाल हो जाती हैं, मुँह में झाग आ जाते हैं, ऐसी अवस्था में उसके अन्दर एक पदार्थ एड्रीनलिन उत्पन्न होता है जो उसके रक्तचाप को बढ़ा देता है व उसके माँस को जहरीला बना देता है। जब मनुष्य वह माँस को खाता है तो उसमें भी एड्रीनलिन प्रवेश कर उसे घातक रोगों की ओर धकेल देता है। एड्रनलीन के साथ जब क्लोरिनेटेड हाइड्रो कार्बन लिया जाता है तब तो यह हार्ट अटेक का गंभीरतम खतरा उत्पन्न कर देता है।
जर्मनी के प्रोफेसर एग्नरबर्ग का मानना है कि अंडा 51.83% कफ पैदा करता है। वह शरीर के पोषक तत्वों को असंतुलित कर देता है।
अमेरिका के डा0 ई0बी0एमारी तथा इग्लेंड के डा0 इन्हा ने अपनी विश्व विख्यात पुस्तकों में साफ माना है कि अंडा मनुष्य के लिये ज़हर है।
इग्लेंड के डा0 आर0 जे0 विलियम का निष्कर्ष है कि सम्भव है अंडा खाने वाले शुरू में अधिक चुस्ती-फुर्ती भले ही अनुभव करें किंतु बाद में उन्हें हृदय रोग, एक्ज़ीमा, लकवा, जैसे भयानक रोगों का शिकार हो जाना पड़ता है।
माँसाहार जिन असाध्य रोगोंको जन्म देता है उस पर अन्य ताज़ा खोजों के परिणाम निम्न हैं—
· रक्त् वाहिनियों की भीतरी दीवारों पर कोलेस्ट्रोल की तहों का जमना हृदयरोग तथा उच्च रक्त चाप का मुख्य कारण है। कोलेस्ट्रोल का सर्वाधिक प्रमुख स्रोत अंडा है फिर माँस, मलाई, मक्खन और घी होते हैं।
· मिर्गी (एपीलेप्सी)—यह संक्रमित माँस व बगैर धुली सब्जियां खाने से होता है।
· आंतों का अल्सर, एपेन्डीसाइटिस, आंतों और मलद्वार का कैंसर--ये भी शाकाहारियों की अपेक्षा माँसाहारियों में अधिक होते हैं।
· गुर्दे की बीमारियाँ—अधिक प्रोटीन युक्त भोजन गुर्दे खराब करता है। शाकाहारी भोजन फैलावदार व पेलेटेविल होने से पेट जल्दी भरता है अत:उससे मनुष्य आवश्यकता से अधिक प्रोटीन नहीं ले पाता है जब कि माँसाहार से आसानी से आवश्यकता से अधिक प्रोटीन खाया जाता है।
· संधिवात, गठिया व अन्य वात रोग—माँसाहार खून में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ाता है जिसके जोडों पर जमाव होने के कारण ये रोग उत्पन्न होते हैं। ये देखा गया है कि माँस, अंडा, चाय, काफी आदि छोड-ने पर इस प्रकार के रोगियों को लाभ पहुँचा।
· रक्त धमनियों का मोटा होना—इसका कारण भोजन में पोलीसेच्युरेटेड फेट, कोलेस्ट्रोल व केलोरीज का आधिक्य है। माँसाहारी भोजन में इन पदार्थों की अधिकता रहती है जब कि शाकाहारी भोजन में बहुत कम। सब्जी, फल इत्यादि में ये पदार्थ न के बराबर होते हैं। अत: शाकाहारी भोजन इस रोग से बचाने में सहायक है।
· कैंसर—यह जानलेवा रोग माँसाहरियों की अपेक्षा शाकाहारियों में बहुत कम पाया जाता है।
· आंतों का सड़ना—अंडा, माँस आदि खाने से पेचिश, मंदाग्नि आदि बीमारियाँ घर कर जाती हैं, आमाशय कमज़ोर हो जाता है व आंतों में सड़न होने लगती है।
· त्वक रोग, मुहाँसे आदि—त्वचा की रक्षा के लिये विटामिन ए का सर्वाधिक महत्व है जो गाजर, टमाटर, हरी सब्जियों आदि में ही बहुतायत में होता है, यह शाकाहारी पदार्थ जहाँ त्वचा की रक्षा करते हैं वहीं माँस, अंडे, शराब आदि त्वचा रोगों को बढावा देते हैं।
· अन्य रोग—जैसे माइग्रेन, इंफेक्शन से होने वाले रोग, स्त्रियों के मासिक धर्म सम्बन्धी रोग आदि भी माँसाहारियों में अधिक पाये जाते हैं।
सारांश यह है कि जहाँ शाकाहारी भोजन प्राय: प्रत्येक रोग को रोकता है वहीं माँसाहारी भोजन प्रत्येक रोग को बढावा देता है। शाकाहार आयु बढ़ाता है तो माँसाहार आयु घटाता है।
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