एक दवाखाने में एक मरीज डाक्टर के पास आया, मुँह बिचकाते हुये बोला- डाक्टर साहब, जाने क्या हो गया है पिछले एक महीने से रोटी अच्छी नहीँ लगती, मन उचाट सा रहता है, कमज़ोर भी हो गया हूँ, भूख बिलकुल नहीं लगती। डाक्टर साहब ने परीक्षण करने के बाद उसे दो पुडियाँ दीं और कहा-एक सुबह और एक शाम को खा लेना। मरीज ने झुँझला कर कहा- मुझे पुडिया नहीं कोई एसा उपाय करो जिस से मैं पूडियाँ खा सकूँ।
आये दिन डाक्टर, वैद्य, हकीमों के अस्सी प्रतिशत मरीजों की यही शिकायत रहती है कि हमारी भूख खत्म हो गयी है। एसा क्यूँ होता है? शायद हम लोग अपनी ही गलतियों को सुधार लें तो एसी शिकायत करने का मौका ही न मिले।
भोजन की एक क्रिया है। हर क्रिया के बाद एक निश्चित विश्राम की आवश्यकता होती है। भोजन करने के बाद आमाशय और आंतों में पाचन के बाद मलांश को मलाशय मे धकेलने की पूरी क्रिया में आंतों को एक विशेष श्रम करना पड़ता है। श्रम के बाद यदि विश्राम नहीं मिलेगा और उससे पहले ही हमने दूसरा भोजन कर लिया पेट नाराज हो जायेगा और ये नाराजगी भूख न लगने के रूप में प्रकट होगी।
कितना और कैसे खायें ?......
1-सुबह हल्का पेय जूस आदि लें
2-दोपहर को दाल रोटी, चावल, सब्जी, या जो रुचिकर लगे, लें।
3-शाम को दलिया, दूध, फल, या हल्का शाकाहार लें।
बस इस नियम मे परिवर्तन न लायें। कभी चाट पकोडे, समोसे, या बिस्किट ले लेना पाचन क्रिया मे व्यवधान डालता है। अच्छा तो तभी रहता है जब तक तेज़ भूख न लगे तब तक न खाया जाये। हमारे पेट का स्वभाव सरकारी कर्मचारियों जैसा है, जैसे कि उन्हे एक सप्ताह काम करने के बाद रविवार की छुट्टी चाहिये, यदि नहीं मिलेगी तो मूड खराब हो जायेगा। इसी तरह एक या दो सप्ताह के बाद अपने पेट को उपवास के माध्यम से आराम अवश्य दीजिये।
आहार में अन्न की मात्रा कम तथा पानी की मात्रा अधिक होनी चाहिये। भोजन के एक घंटे बाद शीतल जल लेने से बहुत उपयोगी रहता है इससे पेट भी साफ रहता है और भूख भी खुल कर लगती है।
दो बार खाना खाते हैं तो दो बार ही शौच जाना चाहिये। दोबारा भोजन तभी करना चाहिये जब पहला शौच हो जाये।
क्या न खायें ?---
अपने आहार में गरिष्ठता से समान दूरी बनाये रखें, ये वो पदार्थ होतें हैं जिन्हें पचाने में हमारे शरीर की आंतों को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। मिठाइयाँ तथा मावे से बनी वस्तुयें कम खानी चाहिये। तेज़ नमक़, तेज़ मिर्च, तेल, शक्कर, गुड, खटाई का प्रयोग जहाँ तक हो सके कम करें। दूध और घी की अधिकता भी भूख को शिथिल बना देती है। मांस, शराब, बीडी, सिगरेट, चाय, तम्बाखू आदि व्यसन पाचक रसों को कम स्रवित करते हैं। फलस्वरूप पेट की बीमारियाँ घर करने लगती हैं। एलोपेथिक कुछ दवाइयों से भी भूख एक दम मारी जाती है। जब तक उन दवाओं का प्रभाव रहता है अरुचि सी बनी रहती है इसलिये आज कल डाक्टर एलोपेथिक दवाओं के साथ लिवर उत्तेजक या विटामिन बी के स्रोतों की दवाओं को प्रेस्क्राइब करने लगे हैं।
कोष्ठ्बद्धता यानि कब्ज रहना, स्वास्थ्य का परम शत्रु है। भूख लगे नहीं, शौच आये नहीं फिर भी भोजन करते जायें तो पेट में मल की दीवारें चढती जायेंगी और आंतें मल के कारण फूल कर कमज़ोर हो जायेंगी।
कुछ मनोवेज्ञानिक कारण भी हैं जिनसे भूख नहीं लगती। शोक, चिंता, भय, तथा क्रोध की हालत में हमारी पाचक ग्रंथियों से स्राव कम निकलते हैं। परिणामस्वरूप भूख नहीं लगती। इसलिये जहाँ तक हो सके प्रसन्नचित्त रहना चाहिये। प्रसन्नमना होकर भोजन करने का अपना अलग मज़ा है।
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