हमारे शरीर मे सबसे कोमल कोई अंग है तो वो है फेफड़े...। ज़रा सी गर्मी या सर्दी का सबसे पहला प्रभाव इन्हीं पर पड़ता है। शरीर में कहीं भी कोई संक्रमण( इंफेक्शन ) है तो सबसे पहले यही प्रभावी होते हैं। बच्चों और बूढ़ों मे स्थिति एक जैसी होती है। फेफड़ों के प्रभावित होने पर जो मुख्य बीमारी होती है वो है कास यानी खाँसी।
आयुर्वेद मतानुसार उदान वायु के बिगड़ जाने से वह गले से ऊपर सिर की ओर जाती है तो खाँसी नामक रोग होता है। उदान वायु का स्थान कंठ यानि गला होता है।
कारण---
1- मुँह तथा नाक में धुँआ या धूल के कणों का जाना ।
2- अधिक मेहनत करना।
3- रूखा भोजन करना।
4- असावधानी से खाने पीने पर कुछ अंश सांस की नली मेंबचले जाना।
5- छींक के वेग को रोकना।
पूर्वरूप--
इस रोग के होने से पहले गले के अन्दर ऐसा लगता है कि छोटे-छोटे काँटे भरे हुये हैं, गले में खुजली, खाने में स्वाद न आना, पूरा गला और तालू कफ से जकड़ा हुआ प्रतीत होना, आवाज़ बैठी हुई लगना आदि।
खाँसी के प्रकार—
1- गल शुंडिका ( एपीग्लोटिस ) इतनी बढ़ जाती है कि वो जीभ के अंतिम भाग पर टिकने लगती है, इससे गले में सुरसुराहट के साथ सूखी खाँसी उठती है। खासतोर से रात के समय चित्त लेटने से अधिक उठती है।
2- जब फेफडॉं में टी.बी. हो जाती है तो खाँसी रात को सोते समय और सुबह 4 बजे अधिक उठती है। शुरू में सूखी खाँसी आती है बाद में फेफड़ों मे घाव बन जाने के कारण पीव मिश्रित कफ युक्त खाँसी आती है।
3- जब फेफड़ों की किसी धमनी में कोई संक्रमण या ट्यूमर होने लगे तो भी खाँसी आती है। अगर सूजन है तो हल्की खाँसी आती है, खाँसते समय बहुत दर्द होता है, इसलिये रोगी ज़ोर से खाँस भी नही पाता।
4- हृदय रोग होने की हालत में तो साँस लेने में भी कठिनाई होने लगती है।
5- गले में सूजन हो तो भी तेज़ खाँसी उठती है।
6- साँस नली की श्लेष्मिक कला (म्यूकस मेम्ब्रेन ) में सूजन भी खाँसी का बहुत अहम कारण है।
7- जब भोजन तंत्र में कहीं कोई सूजन या संक्रमण होता है तो खाँसी का वेग बहुत तेज़ होता है और बहुत कम कफ निकलता है।
8- स्वर यंत्र में जब टी.बी. हो जाती है तो आवाज़ बैठ जाती है और दर्द के साथ तेज़ खाँसी अती है।
9- बीड़ी सिगरेट पीने वालों को अक्सर खाँसी की शिकायत होती है।
10- मिर्गी के दौरों के समय जब खाँसी आती है तो तेज़ वेग के साथ रक्त मिला हुआ भी हो सकता है।
11- ज़ुकाम में भी सूखी खाँसी रात को सोने के बाद आती है।
11-
अनुभव के तौर पर देखें तो -
अ- ऐसी खाँसी जिसमें वायु विकृत होती है, रोगी को खाँसी का दौरा लगातार तेज़ वेग के साथ और बार-बार आता है, इसमें गले में खरखराहट , पीठ और छाती में दर्द होता है।
ब- जिसमें पित्त प्रकुपित होता है उसमें रोगी के मुंह का स्वाद कड़वा और कफ का स्वाद तीखा होता है।
स- जिसमें कफ प्रकुपित होता है उसमें रोगी के मुँह से अधिक से अधिक कफ निकलता है।
खाँसी की शास्त्रीय चिकित्सा--
लौह योग- पिप्पल्यादि लोह, ताप्यादि लोह
रस योग- चन्द्रामृत, लक्ष्मी विलास, श्वास कास चिंतामणि, अग्नि रस, महा मृगांक रस,लोकनाथ रस, समीरपन्नग रस, ताल सिन्दूर, कफकेतु रस ।
पर्पटी योग- रस पर्पटी, ताम्र पर्पटी, अभ्र पर्पटी।
भस्म योग- अभ्रक, रोप्य, स्वर्ण, गोदंती, श्रंग, बज्र, प्रवाल, मयूर चन्द्रिका।
चूर्ण योग- सितोपलादि, चिंतामणि, मरीचियादि, तालीसादि, लवंगादि, सेंधवादि।
वटी योग- एलादि, लवंगादि, कास कर्तरी, मरीच्यादि, व्योषादि, खदिरादि।
क्वाथ योग- वासादि, दशमूल, कंटकारी, पिप्पल्यादि।
अवलेह- वासावलेह, च्यवनप्राश, अगस्त्यहरीतकी, द्राक्षादि, व्याघ्री हरितकी, विभीतकावलेह।
आसव-अरिष्ट- वासासव, कनकासव, द्राक्षारिष्ट, बब्बूलारिष्ट, अंगूरासव, दशमूलारिष्ट।
सावधानी-
उपरोक्त सभी शास्त्रीय दवायें किसी योग्य आयुर्वेदिक डाक्टर की देखरेख में उनके परामर्श के अनुसार ही लेनी चाहिये।
डा. विष्णु सक्सैना B.A.M.S.
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