इसी जगत में जो भी जैविक प्राणी जन्म लेता है वह चाहता है कि उसे जीने के सभी अधिकार मिलें। इसी प्रकार पेड़ पौधों के जीवन को ही ले लें, जिस पौधे को समुचित रूप से खाद, पानी, वायु, प्रकाश मिल जाता है वो तो जीवित रहते हैं जिन्हें इनमें से किसी की भी कमी हो जाती है वे ही नष्ट हो जाते हैं। इसीलिये कहा गया है कि नव जात शिशु का मूल आहार है “दूध” और शिशु के स्वास्थ्य की बुनियाद माँ के दूध पर ही निर्भर करती है। लेकिन आज के आधुनिक युग में अक्सर ये देखा गया है कि लडकियाँ जब पहली बार माँ बनती हैं तो ये समझती हैं कि अब हमारी सारी ज़िम्मेदारियाँ समाप्त हो गयीं जब कि ऐसा नहीं है, सही मायने में जिम्मेदारी तो शिशु के पैदा होने के बाद शुरू होती है। जो मातायें इस पहली जिम्मेदारी को अच्छी तरह निर्वाह कर लेती हैं वही मातायें आदर के योग्य होती हैं।
बहुत सी मातायें यह सोचती हैं कि बच्चे को दूध पिलाने से उनके शरीर की फिगर खराब हो जायेगी या उनके स्तन ढीले होकर लटक जायेंगे या उनके सौन्दर्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा या वे जल्दी ही प्रौढ़ दिखाई देने लगेंगी तो उनका ये सोचना नितान्त भ्रामक है। जरा सोचिये जिस बच्चे को 9 माह तक अपने पेट में रख कर बेडौल बनी रहने में गौरव अनुभव करती है, जन्म लेने के बाद उसे 6-7 माह अपना अमृत तुल्य दूध पिलाने से कतराती है? आखिर ऐसी विडम्बना क्यूँ ?
आचार्य सुश्रुत ने भी माता के दूध के गुणों का बखान करते हुये लिखा है कि---
नार्यास्तु मधुरं स्तन्यं कषायानुरसं गुरु ।
स्निग्धं स्थैर्यकरं शीतं चक्षुष्य बलवर्धनम ॥
सु0 सू0 अ0 45/57
स्तनपान से लाभ—
· माँ का दूध बच्चे के लिये उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप होता है
· हमेशा शुद्ध, स्वादिष्ट व ताज़ा होता है जिससे लम्बे समय तक भी पान करने से कोई अरुचि नहीं होती क्यों कि इसमें स्वाभाविक रूप से मधुरता होती है।
· ये बच्चे के अनुकूल ताप पर उपलब्ध रहता है।
· बच्चा एक नन्हा वर्धनशील पौधा है। बच्चे के विकास के लिये कुछ निश्चित पदार्थों की आवश्यकता होती है जिनमें केल्शियम, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन आदि विशेष होते हैं। माँ का दूध ये तत्व बच्चे को तत्काल प्रदान करता है।
· माँ का दूध पूर्ण रूप से विसंक्रमित होता है, क्यों कि वह माँ के स्तन से सीधा बच्चे के मुँह में पहुँचता है और वायु मंडल का उससे सम्पर्क नहीं हो पाता।
· यह बच्चे को विभिन्न प्रकार की एलर्जियों से भी बचाता है।
· ये बच्चे की विभिन्न बीमारियों से भी रक्षा करता है जैसे श्वसन तंत्र के रोग तथा आँत की सूजन, आदि।
· ये माताओं में कैंसर, स्तन में फोड़े, निपिल में सूजन तथा मोटापे जैसी बीमरियों की संभावना कम कर देता है।
· बच्चे में भी स्थूलता, सूखे की बीमारी, दाँत में कीड़े आदि बीमारियाँ कम करता है।
· इससे माँ और बेटे के बीच स्वस्थ भावनात्मक सम्बन्ध विकसित होता है जो बच्चे को मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है तथा विकास करता है।
· ये दो बच्चों के जन्म के बीच की दूरी बढ़ाने में भी सहायक है।
· आर्थिक द्रष्टि से भी यह उपयोगी है।
बच्चे के जन्म के एक घंटे के बाद ही उसे स्तन पान करा देना चाहिये। प्रारम्भ के तीन चार दिन तो बच्चे को बार बार स्तनों से लगाना चाहिये इससे स्तनों में ज्यादा से ज्यादा दूध उतर आता है। शिशु के जन्म के जन्म के तुरंत बाद जो स्तनों से दूध निकलता है उसे “कोलेस्ट्रोम” कहते हैं, ये हल्के पीले से रंग का होता है इसमें प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहैड्रेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। शुरू शुरू में बच्चे को भूख के समय तथा रोने के समय दूध पिलाना चाहिये यदि आधी रात को भी जरूरी हो तो भी उसकी पूर्ति करें, इस तरह शिशु को कम से कम 6 माह तक तो स्तन पान कराना ही चाहिये। कुशल बाल रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि मासिक धर्म के दौरान, बुखार, पेचिश, पीलिया आदि बीमारियों में भी मातायें बच्चे को दूध पिला सकती हैं, एक बात अवश्य ध्यान में रखें कि दूध पिलाते समय बच्चे को बीच बीच में डकार अवश्य दिलवा देनी चाहिये। माँ के दूध में अनेक एंटीबाडीज होते हैं, इसलिये माँ के बीमार होने पर भी बच्चे को दूध पिलाना हानिकारक नहीं है।
स्तनपान में सावधानियाँ—
· स्तन पान कराते समय माँ को हर संभव सफाई का ध्यान रखना चाहिये।
· स्तन पान के समय माँ और बेटे को आमतौर पर शांत, आराम की अवस्था में रहना चाहिये।
· हर बार दूध पिलाते समय कम से कम एक स्तन अवश्य खाली कर ले।
· दुग्ध पान का समय 5 मिनट से आरम्भ कर के धीरे धीरे बढा कर 15-20 मिनट तक कर लें।
· ऐसी अवस्था में माँ को चाहिये कि अपने खान पान, सफाई पर विशेष ध्यान रखें, सामान्य से अधिक पौष्टिक भोजन, दूध, फल लें तथा भरपूर आराम करें।
· यदि दूध पिलाने के बाद भी स्तन भारी हो रहा है तो अतिरिक्त दूध को दबाकर बाहर निकाल देना चाहिये।
माताओं को भी लाभ –
जो मातायें इस डर से कि शरीर का फिगर बिगड़ जायेगा, दूध नहीं पिलातीं उन्हें अनेक रोगों से ग्रस्त हो कर बेडौल होकर घूमते देखा है। स्तन पान महिला की शारीरिक आकृति को सँवारने का एक मात्र उपाय है। गर्भावस्था के समय शरीर में जो वसा की अतिरिक्त मात्रा जमा हो जाती है, उसका उपयोग स्तन पान द्वारा हो जाता है।
शिशु जन्म के तुरंत बाद बच्चे को दूध पिलाने से बच्चेदानी सख्त हो जाती है और रक्तस्राव बंद होने में मदद मिलती है इससे डिलीवरी के बाद महिला की शारीरिक स्थिति को भी सामान्य होने में सहायता मिलती है।
स्तन पान उत्तम गर्भ निरोधक है।
स्तन केंसर भी अधिकतर उन माताओं को होता है जो अपने बच्चे को दूध पिलाने में संकोच करती हैं। इससे उनके स्तनों में अवरोध के कारण गांठें पड़ जाती है, जो केंसर तथा अन्य प्रकार के रोगों को जन्म देती हैं। स्वाभाविक रूप से दूध आना बन्द हो जाये तो अलग बात है लेकिन दूध बनता रहे और बाहर निकलने के वजाय नाडियों में पड़ा-पड़ा सूखता रहे तो विकार तो उत्पन्न होगा ही।
रासायनिक जाँचें भी सिद्ध कर चुकी हैं कि शिशु की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसकी पोषण आवश्यकतायें भी बढ़ती जाती हैं उसे नये-नये रासायनिक तत्वों की आवश्यकता होने लगती है, ये कमी माँ का दूध ही पूरा करता है किसी पशु या डिब्बे का दूध नहीं। गाय भेंस का दूध पचाने की क्षमता तो बच्चे में धीरे-धीरे विकसित होती है, आरम्भ में ही उसके पाचन तंत्र पर अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिये।
प्राकृतिक तौर पर भी जरा सोचें तो पेट में भ्रूण का विकास माँ के शरीर को नुकसान पहुँचाये बिना
तो वैसे भी सम्भव नहीं होता। प्रसव से पहले का कष्ट, रक्तस्राव आदि में शरीर को कितना कष्ट उथाना पडता है उसके अनुपात में बच्चे को स्तन पान कराना तो नहीं के बराबर है। जिस बच्चे को जन्म देकर आप अपना ये जीवन सार्थक मानतीं हैं तो उसके विकास और पोषण में ये बाधा क्यों?
माँ का दूध बच्चे के लिये अमृत के समान होता है,
उसे प्रथम भोजन का पाठ तो माँ ही पढ़ाती है यदि वही अपने पाठ में आना कानी करने लगे तो उस बच्चे का भविष्य क्या होगा, शायद जीवन भर उपेक्षा का..............।
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