मेदोमांसातिवृद्धत्वाच्चल स्फिगुदरस्तन:।
अयथोपचयोत्साहो नर: अतिस्थूल उच्यते॥
चरक के मतानुसार मेद (फैट) और मांस की अस्वाभाविक वृद्धि के कारण जिस व्यक्ति के नितंब, उदर और स्तन हिलने लगते हैं, तथा जिनके शरीर का गठन और उत्साह उचित नहीं है उसे अति स्थूल (मोटा) कहा जाता है।
आमतौर पर ये किसी भी आयु में हो सकता है लेकिन 40 साल बाद ये अधिक देखा जाता है। कुछ जातियां ही ऐसी हैं जिनमें स्वभावत: मोटापे की प्रवृत्ति पाई जाती है। इनमें डच, दक्षिणी जर्मनी के वासी, कुछ भारतीय, लंका वासी तथा कुछ अफ्रीकी प्रमुख हैं। अक्सर देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा ये महिलाओं मे अधिक पाया जाता है।
कारण ------
क- नि:स्रोतस ग्रंथियों की क्रिया हीनता। इन ग्रंथियों मे थायराइड ग्रंथि, पीयुष ग्रंथि मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त सुप्रारीनल ग्रंथि तथा वृषण ग्रंथि के अंत:स्रावों की विकृति भी इसमें बहुत बडा भाग लेती है। इन ग्रंथियों के स्राव की कमी से मेटाबोलिज्म भी कम हो जाता है जिससे सम्पूर्ण वसा का पाचन नहीं हो पाता और वह धातुओं में एकत्रित होने लगती है।
ख- व्यायाम की कमी
ग- दिन में सोना
घ- अत्यधिक पौष्टिक आहार का सेवन करना।
शरीर में वसा के संचय को देख कर ये अनुमान लगाना बहुत ही सरल है कि या तो आवश्यकता से अधिक पौष्टिक भोजन ग्रहण कर रहा है या वह उस भोजन के ग्रहण के बाद उचित परिश्रम नही करता। मोटे व्यक्तियों को भूख बहुत लगती है इस लिये उन्हे भोजन अधिक करना पडता है। एकत्रित हुयी वसा पर व्यायाम का बहुत असर पडता है। 24 घंटे लेटे रहने वाले व्यक्ति के लिए 1700 केलोरी ऊर्जा की आवश्यकता है किंतु चलने फिरने वालों के लिये इससे अधिक केलोरी प्राप्त करने के लिये भोजन अधिक मात्रा में लेना पडता है। किंतु जिस अवस्था में रोगी परिश्रम न करते हुये भी अत्यधिक पौष्टिक वसामय आहार लेता है तो सम्पूर्ण वसा का पाचन नहीं होता और वह धातुओं मे संचित हो जाती है। इसी तरह ग्रंथिओं के स्राव की कमी का परिणाम भी यही होता है। शराब के पीने से भी मोटापा बढ जाता है।
वसा, त्वचा के नीचे, वपा(ग्रेटर ओमेंटम),आंत्र निबन्धिनी(मेसेंट्री) तथा ह्रदय और वृक्क के चारों ओर संचय होती है।
लक्षण-----
1- रोगी की गतिशीलता में कमी हो जाती है।
2- शरीर का गठन देखने में अच्छा नहीं लगता।
3- साधारण परिश्रम से सांस फूल जाती है।
4- हार्ट अटेक भी हो जाता है।
5- शरीर में खुजली हो जाती है।
6- मधुमेह भी बहुधा देखा गया है।
आचार्य चरक ने तो मैथुन शक्ति का हीन होना, अधिक पसीने के कारण शरीर मे दुर्गंध आना तथा भूख, प्यास के अधिक लगने जैसे लक्षण और गिनाये हैं।
इसलिये रोगी को चाहिये कि खाना खाने के बाद 10-15 मिनट रोज टहलें। अधिक से अधिक पैदल चलने की आदत डालें। आहार की मात्रा कम लें यदि भोजन अधिक भी खाना पडे तो वह पौष्टिक कम हो। ह्रदय से सम्बन्धी कोई भी परेशानी हो तो तुरंत कुशल चिकित्सक से परामर्श लें। दिन मे कम से कम सोयें, इससे रात को अच्छी नींद आती है। जल्दी जगने की आदत डालें।औषधि के रूप में कुछ ऐसी गोलियाँ भी आती हैं जो भूख को कम करती हैं। लेकिन उनसे कभी कभी चक्कर आने शुरू हो जाते हैं। इसलिये कोई भी औषधि लेने से पहले चिकित्सक की राय जरूर ले लें।
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