रक्त चाप की आयुर्वेदिक विवेचना......

Saturday, June 18, 2011





रक्त चाप का सीधा सम्बन्ध वृक्क, यकृत और हृदय से है। शरीर मे हमारा रक्त शिराओं और धमनियों के माध्यम से घूमता है, ये घूमने का कार्य वायु के द्वारा होता है। अति रूक्ष, अति क्षारीय, नमकीन, खटाई से युक्त पदार्थों के अति सेवन से वायु मे विकृति आ जाती है जिसके कारण रस-रक्त के परिसंचलन में विकार आ जाता है,जिससे रस-रक्त का दबाव भी कभी कम और कभी अधिक हो जाता है जिसे रक्त चाप, रक्त भार, या रक्त दाब(blood pressure ) कहा जाता है। चरक ने कहा भी है-

गुरु शीतमतितीक्ष्मतिस्निग्धं समंजसम।

रक्तवाहिनी दुष्यंति चिंत्यना मतिचिंतनात।। च.वि.5/13

यह दो प्रकार का होता है--

1- उच्च रक्तचाप

2- न्यून रक्त चाप

जी में घबराहट, बेचैनी, हृदय में शूल, सिर में दर्द्, खट्टी डकारें, मुंह में पानी आना ये लक्षण रक्तातिवृद्धि( high blood pressure) के हैं

रसो$ति वृद्धोहृदयोत्कूशदं प्रसेकं चापादयति । सु.सू.15/44

ह्रदय में पीडा, कम्पन, शूल तथा प्यास की अधिकता बढ़ जाती है ये लक्षण रक्तक्षीण (low blood pressure) के हैं।

रस क्षतेहृत्योड़ाकम्प शूल्यतास्तृष्णा च । सु.सू.17/64

उच्च रक्त चाप---

आजकल मनुष्य जीने के लिये भोतिक संसाधनों और रोज़ी की चिंता में, सुख शांति के अभाव से ग्रस्त होने के कारण इस रोग का शिकार हो रहा है। किसी भी मानसिक विकार काम, क्रोध, शोक, चिंतादि तथा मानसिक रोग पागलपन, मिरगी नींद न आना तथा मानसिक आघात से रक्तचाप बढ़ जाता है। गुर्दों के सभी प्रकार के रोगों में, फिरंग रोग, व्रक्कों के ऊपर स्थित सुप्रारीनल ग्रंथि में केंसर, या गांठ होने से तथा एल्डोस्टेरोन हार्मोन की अधिकता, पिट्यूटरीग्रंथि की प्रबलता, एद्रीनल ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन की वृद्धि से, थायरोयड ग्रंथि की अति क्रिया शीलता या किसी भी विषद्रव का संचार होने से, गर्भवती के गर्भस्थ शिशु मे विकार हो जाने की स्थिति, ब्रेन हेम्रेज या ब्रेन केंसर में, पुरुषों में रक्तपित्त, स्त्रियों में अति रजोस्राव से, पोषणिका ग्रंथि की वृद्धि या उसके स्राव की वृद्धि से, हार्टअटेक में, मोटापे मधुमेह तथा ग्रंथि रोग में रक्तचाप बढ़ जाता है। पेतृक कारणों, शराब, चाय, तम्बाखू, काफी, गर्ममसालों का लम्बे समय तक सेवन करना भी उच्च रक्तचाप का कारण होता है।


शास्त्रीय चिकित्सा---

सर्व प्रथम निदानं परिवर्जनं सिद्धांत से रोग के कारण को दूर करना चाहिये। अपथ्य आहार विहार को छोड़ कर सात्विक जीवन यापन करना चाहिये।

1- रसराज रस की 1-1 गोली मधु या दूध के साथ.

2- वृहदवात चिंतामणि रस.

3- अधिक चक्कर आने पर लघ्वानन्द रस.

4- शांत निद्रा लाने के लिये सर्पगन्धा घन वटी.

5- आक्षेप की हालत में योगेन्द्र रस सर्वोत्तम है.

6- अश्वगन्धारिष्ट और अर्जुनारिष्ट 1-1 चम्मच बराबर पानी मिला कर दोनों समय भोजन के बाद.

7- मध्यम नरायण तैल या कुशुम्भ घृतम शिर पर मालिश के लिये,

8- पिप्पली वर्धमान का प्रयोग भी रक्तचाप शामक है।

9- सर्पगन्धा चूर्ण ½ ग्राम मधु या जल के साथ लेने से बहुत गुणकारी है।

न्यून रक्तचाप--

रक्त का दाब सामान्य से कम रहना न्यून रक्तचाप कहा जाता है। आयुर्वेद के रक्तक्षय मे न्यून रक्तचाप का समावेश किया जा सकता है। आचार्य सुश्रुत ने कहा भी है-


शोणित क्षय त्वक्वारुप्य्ममल शीत प्रार्थना सिरा शौथिल्य।

कारण

हृदय पेशी का दुर्बल होना, रक्त की कुल मात्रा में कमी होना, आनुवांशिकी में रक्तचाप कम हो जाता है। उल्टियां, दस्त्, रक्तप्रदर, पोषण अभाव, यकृतपात, जीर्ण ज्वर, जलना, तीव्र विषमयता, टी.बी., काम की अधिकता आदि

लक्षण-

न्यून रक्तचाप के लक्षण मुख्य रूप से मस्तिष्क मे रक्त प्रवाह की कमी से होते हैं जैसे- चक्कर, आलस्य, पसीना आना, कमज़ोरी आना, शिर; शून्यता, कानों में विशेष प्रकार की ध्वनि, भूलना , नाड़ी मन्द या क्षीण, श्रम से भय, अस्थिर चित्त, चलने में असमर्थता, यदा कदा मूर्छा, तथा कमज़ोरी होना आदि।

चिकित्सा-

इसकी चिकित्सा में सुपाच्य पोषक आहार तथा शारीरिक, मानसिक आराम बहुत आवश्यक है। ताकत की दवाओं, विटामिनों के प्रयोग से आराम होता है।

1- मकरध्वज 1 रत्ती, प्रवालपिष्टि 2 रत्ती, लक्ष्मी विलास रस 2 गोली शहद से.

2- नवजीवन रस, प्रभाकर वटी, विषमुष्टि वटी 1-1 गोली दूध से.

3- द्राक्षारिष्ट,मृतसंजीवनी सुरा, 4-4 चम्मच.

4- कस्तूरीभूषण रस व वृहद वातचिंतामणि रस व वातकुलांतक रस 1-1 गोली.

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