1- पुराने लोग कहा करते थे कि खाकर हर कोई मरा है बिना खाये कोई नहीं
आयुर्वेद मे कहा गया है कि आमाशय को तीन भागों में विभाजित कर लेना चाहिये, एक भाग में भोजन के ठोस पदार्थों का समावेश, दूसरे में पेय पदार्थों का तथा तीसरे भाग में वात, पित्त, कफ के विचरण के लिये खाली रखना चाहिये।
2- भोजन सदैव नियत समय पर करना चाहिये तथा निश्चित मात्रा में करना चाहिये। नपा तुला भोजन पाचन क्रिया में सहायक होता है।
3- कहा गया है कि भोजन, भोग, और तप ये सब एकांत में ही करने चाहिये। एकांत में भोजन करने से रूखा सूखा भोजन भी अच्छा लगता है।
4- भोजन करते समय प्रसन्न चित्त रहना चाहिये। भोजन के समय क्रोध या शोक होगा तो अन्न का पाचन भली प्रकार नहीं हो सकेगा।
5- अधिक मात्रा में भोजन करना सभी तरह से हानि कारक है। उतना ही भोजन हितकर है जिसे खाते समय बोझ न लगे और न खाने के बाद भारीपन महसूस हो।
6- जिस भोजन को देखने मात्र से घृणा या अरुचि हो तो उसे त्याग देना चाहिये।
7- छात्रों को विशेष कर बासी भोजन नहीं करना चाहिये क्यों कि इससे एक तो शरीर में आलस्य उत्पन्न होता है, दूसरे स्मृति का क्षय होता है।
8- रोटी अच्छी तरह सिकी हुई होनी चाहिये, कच्ची या अधिक जली रोटी पेट में दर्द तथा अपच करती है।
9- पका हुआ भोजन खाते समय मामूली गर्म कर लेना चाहिये। अधिक गर्म करके खाने से उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। ऐसा भोजन आमाशय में कफ को बढा कर हानि पहुँचाता है।
10- अत्यधिक शीत या अति गरम दाँतों के लिये बहुत हानिकारक है। इसलिये भोजन सामान्य गर्म होना चाहिये।
11- भोजन करते समय फ्रिज या बर्फ का पानी नहीं पीना चाहिये। क्यों कि ऐसा करने से जठराग्नि मन्द हो जाती है।
12- दो भोजनों के समय का अंतराल कम से कम 6 घंटे का होना चाहिये। साधारण अन्न से निर्मित भोजन आमतौर पर 3 घंटे में पच जाता है। इसलिये उससे पहले तो भोजन भूल कर भी नहीं करना चाहिये। बिना पचे भोजन पर एक और भोजन कर लेने से पेट में अनेक रोग जन्म ले लेते हैं।
13- भोजन में चिकनाहट रहना भी बहुत जरूरी है।
14- आराम से भोजन करें। प्रत्येक ग्रास को अच्छी प्रकार से चबा कर खायें, इससे मुँह में लार से भोजन के पचने में सहायता मिलती है।
15- जहाँ तक सम्भव हो सके घी और तैल में तली हुई चीजों का कम प्रयोग करें, ये सब गरिष्ठ होते हैं। अरबी, कटहल, उडद, सोयाबीन भी देर से पचने वाली सब्जियाँ तथा दालें हैं इन्हें भी कभी-कभी खाना ही चाहिये।
16- भोजन करते समय ‘तन्मना भुंजीत’ के सिद्धांतानुसार न बहुत अधिक हँसना और न ही अधिक बातचीत करनी चाहिये इससे भोजन आहार नाल के स्थान पर श्वास नलिका में चला जाता है।
17- सुबह चाय काफी के स्थान पर गुनगुने पानी में नीबू निचोड कर पियें तो स्वास्थ्य के लिये बहुत हितकर होता है।
18- कभी भी भर पेट भोजन नहीं करना चाहिये।
19- दोपहर के भोजन के बाद 20 मिनिट आराम करें पर सोयें नहीं तथा रात को सोने से 3 घंटे पहले भोजन करें तथा भोजनोपरांत लगभग 1 किमी. टहलें। ऐसा करने से भोजन सम्यक रूप से पच जाता है।
20- भोजन में दाल या रसेदार सब्जी अवश्य होनी चाहिये। इससे भोजन आसानी से खा लिया जाता है। सूखी सब्जियों से भोजन करने से कलेजे में जलन तथा खट्टी डकारें आने लगती हैं।
यह याद रखें कि शरीर में शक्ति अधिक भोजन करने से नहीं अपितु अच्छी तरह पच कर रस रक्तादि धातुओं में सम्यक रूप से परिवर्तित हो जाने से आती है।
---------------------------
0 comments:
Post a Comment