गर्मियों में जानलेवा हो सकता है बच्चों में... “डायरिया”

Thursday, June 16, 2011

बच्चों के गुदा मार्ग से बार-बार पतला-पतला द्रव निकलने की स्थिति को डायरिया कहते हैं। यह किसी भी मौसम में हो सकता है लेकिन गर्मी के मौसम में होने वाला डायरिया बच्चों के लिये बहुत घातक होता है। इससे शरीर में पानी एवं लवण की कमी हो जाती है इसके साथ यदि बालक को बुखार भी है एवं उल्टियाँ भी हैं तो इस रोग को गेस्ट्रोएंट्राइटिस कहते हैं। डायरिया में लगातार होने वाले पानी एवं लवण की कमी को यदि तुरंत पूरा नहीं किया गया तो यह उसके जीवन के लिये बहुत घातक होता है।

भारत मे यह रोग मार्च से सितम्बर तक अधिकतम होता है। डेड़ से दो मिलियन बच्चे प्रतिवर्ष डायरिया से मौत के मुँह में चले जाते हैं। बच्चों मे डायरिया पहले 2-3 वर्षों तक अधिक रहता है।

सामान्य कारण---

अत्यधिक गरीबी, गन्दा वातावरण, शुद्ध पानी न मिलना, बच्चे का अधिक दुर्बल होना, माँ का दूध न मिलना तथा बोतल से दूध पिलाना ये कुछ मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से बच्चों में डायरिया हो जाता है।

विशिष्ट कारण---

आमतौर पर 65% बच्चों में कारण का पता नहीं चल पाता। फिर भी जिन कारणों से डायरिया संम्भव है वे निम्न हैं-

अ) बेक्टीरिया- सबसे अधिक ई-कोलाई तथा शेष में शिगेला, टाइफाइड एवं पस के बेक्टीरिया ही कारण होते हैं ये विष पैदा करके आंतों की झिल्ली को खराब कर, गलाकर, वहाँ से पानी, लवण, खून तथा पस प्रचुर मात्रा में शरीर से बाहर करते हैं।

ब) वायरस- मुख्यतः रोटा वायरस, यह सदियों में अक्सर डायरिया करते हैं।

स) पैरासाइट- बार-बार डायरिया होने के प्रमुख कारण अमीबा एवं जियारडिया है। कभी-कभी पेट के अन्दर के कीड़ों के कारण भी डायरिया हो जाता है।

द) फंगस- जो डाक्टर कई दिन तक लगातार एंटीबायोटिक्स देते हैं उनमें डायरिया का फंगस मुख्य कारण हो जाता है जिसके कारण मुँह में लाल सफेद छाले एवं गुदा का मुँह लाल हो जाता है।

य) पेरेंट्रल डायरिया- यह वह डायरिया है जिसमें संक्रमण आंतों में न होकर शरीर के किसी भी हिस्से मे होता है जैसे निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, टोंसिल बढ़ जाना, पेशाब की नली में संक्रमण होजाना तथा कान में पस पड़ जाना। उपरोक्त बीमारियां ठीक होने के बाद डायरिया स्वतः ही शांत हो जाता है।

दुष्प्रभाव-

1) शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिससे बालक बैचेन रहने लगता है, पेशाब कम करता है, रोता है, प्यास बहुत लगने लगती है, खाल ढीली होने लगती है।

2) जब पानी की अधिक कमी हो जाती है तो बच्चा सोता नही है, बुखार हो जाता है, जीभ सूखने लगती है, आँखे अन्दर बैठने लगती है, नब्ज तेज चलने लगती है तथा साँसे गहरी-गहरी लेने लग जाता है।

3) जब शरीर मे पानी की अत्यधिक कमी हो जाती है तो बच्चा ठंडा पड़ने लगता है, खाल काली पडने लगती है नब्ज बहुत धीरे-धीरे चलने लगती है। पेशाब बनना बन्द हो जाता है और बच्चा चुप पड़ने लगता है।

सोडियम, पोटेशियम तथा बाइकार्बोनेट शरीर मे से कम होने लगते हैं जिनकी पूर्ति अत्यंत आवश्यक है।

4) कभी-कभी मातायें बाजार से पीली गोली या अफीम का कोई योग देकर बच्चे के दस्त बन्द करना चाहती है, परिणाम बहुत बुरा होता है, लोमोटिल, लोमोफेन जैसी दवाओं के बाद भयंकर पेट फूल जाता है। दरअसल ऐसे बच्चों में लेक्टोज नामक शुगर का पाचन नहीं हो पाता है।

5) दस्त के साथ-साथ लगातार उल्टियाँ भी होने लगती हैं, कारण मुँह से बार-बार पानी लेना, आंतों में संक्रमण होना, लवणों तथा पानी की कमी होना तथा पेट फूलना आदि।

6) बेक्टीरिया के विष की वजह से, बीकाम्पलेक्स की कमी से, एंटीबायोटिक्स का लगातार प्रयोग होने से, लेक्टिक एसिड से एवं बार-बार पोंछने से गुदा का स्थान लाल पड़ जाता है।

7) बेक्टीरिया या वायरस संक्रमण से कभी-कभी बुखार भी आ जाता है।

8) कभी-कभी सांस लेने में परेशानी होने लगती है क्योंकि बाइकार्बोनेट आयन की कमी पेट फूलना, सांस नली में संक्रमण तथा निमोनिया इसके मुख्य कारण है।

9) बैक्टीरिया, अमीबा, कीड़े हो जाना, आंतों में आंतें फंस जाना तथा खून मे एक विशेष प्रकार की बीमारी के कारण गुदा से ताजा खून आने लगता है। यह खतरे की निशानी है।

10) पेशाब का न आना डिहाइड्रेशन का सबसे गम्भीर दुष्प्रभाव है। जैसे ही एसी स्थिति नजर आये तुरंत बालरोग चिकित्सक को दिखायें।

उपचार---

1) कभी भी माँ बाप बच्चे के ऊपर अपने इलाज का प्रयोग न करें। एंटीबायोटिक्स जैंटामाइसिन, एमीकासिन, फ्यूराजोलीडिन, तथा मेट्रोनिडाजोल जैसी दवायें सदैव चिकित्सक के परामर्श और देखरेख में ही बच्चे के ऊपर प्रयोग करें।

2) चीनी-नमक का घोल, पतली खिचड़ी, साबूदाना, पतली दाल का पानी, चावल, केला, उबला हुआ ठंडा पानी, दही, सब्जी, सूप इत्यादि देते रहें।

3) इलेक्ट्रोल पाउडर या ओ.आर.एस. घोल थोड़ी-थोड़ी देर बाद देते रहें। यदि एसा प्रतीत हो रहा हो कि पानी की कमी कुछ ज्यादा ही होगयी है तो बच्चे को तुरंत बालरोग चिकित्सक के पास ले जाकर ड्रिप लगवायें।

4) चिकित्सक को भी चाहिये कि यदि बच्चे की हालत नाजुक होती जारही है तो इमरजेंसी में रिंगरलेक्टेट की बोतल लगायें तथा वजन से 40 गुणा करके उतना ही मि.ली. पानी एक घण्टे में चढ़ा दें। इससे बच्चा धीरे-धीरे अपनी पुरानी स्थिति में आता चला जायेगा और स्वस्थ हो जायेगा।

0 comments:

Post a Comment