बच्चों की समस्यायें, समझदारी से निपटायें ।

Saturday, June 18, 2011





बच्चों में झगड़ालू प्रवृत्ति की जड़ें घर में ही जन्म लेती हैं। यदि माँ-बाप में नहीं पटती, बात-बात पर लड़ाई झगड़ा चलता रहता है तो ऐसे वातावरण में बच्चा नकल करते करते वैस ही बन जाता है। अनेक माता पिता तो बच्चों को खुली छूट दे देते हैं और उनके छोटे मोटे झगड़ों पर ध्यान नहीं देते। वे लोग यह कह कर संतुष्ट हो जाते हैं कि बचपन में सभी ऐसा करते हैं, बड़े होकर सब अपने आप ठीक हो जायेंगे। ये गलत धारणा माँ-बाप को कभी-कभी बडी मँहगी पडती है। धीरे-धीरे बच्चा अपने साथियों के साथ खेलते हुये उलाहना देने लगता है।

बच्चे का मानसिक विकास उसके पारिवारिक जीवन पर बहुत निर्भर करता है। यूँ तो सीखने समझने की प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है लकिन बाल जीवन के प्रारंभिक वर्ष विशेष महत्वपूर्ण होते हैं। वास्तव में कच्ची मिट्टी से घड़ा बनाना आसान होता है, लेकिन पक जाने पर उसे बदलना असम्भव है। परिवार ही बच्चे की पहली पाठशाला है जहाँ माँ रूपी प्रथम शिक्षिका एवं संरक्षिका द्वारा बालक जीवन का प्रथम पाठ पढ़ता है। अनुकरण या दोहराने की आदत बच्चे में जन्मजात होती है वह जैसे माँ को व्यवहार करते हुये देखता है बस बिना सोचे समझे वैसा ही करता चला जाता है।

कभी-कभी हम बाल मनोविज्ञान को गलत रूप में समझ कर बच्चों को खुली छूट दे देते हैं लेकिन हमें बाद में पछताना पड़ता है। कभी-कभी मातायें व्यस्तता का बहाना बना कर अपने कर्तव्य से मुँह मोड़े रहती हैं, लेकिन उन्हें चाहिये कि अपने कामकाजी माहोल से बच्चों के लिये भी कम से कम एक घंटा जरूर निकालें, उनके साथ घुलें मिलें फिर देखें बच्चे की दुनियाँ में कितना आनंद आता है आपको। उनक़ी बातें सुनें उनकी समस्याओं को समझें और धीरे-धीरे कहानी और रोचक प्रसंगों के माध्यम से उन्हें सदाचरण की शिक्षा दें और समाधान करें। धीरे-धीरे बच्चे की झिझक आपसे खुलने लगेगी तब आप उससे आसानी से कह सकते हैं कि साथियों और भाई-बहनों से लड़ना कितनी बुरी बात है।

सभी मनोवेज्ञानिक इस विषय पर एक मत हैं उनके शोधों के कुछ रोचक परिणाम निम्न हैं—

1- बच्चे जिन्हें अच्छी तरह नहीं जानते उनसे झगड़ा नहीं करते, वे उन्हीं से लड़ते हैं जो उनके अच्छे मित्र या संगी साथी हों।

2- ये आमतौर पर खिलोनों या इसी प्रकार की वस्तुओं को लेकर झगड़ा करते हैं।

3- यदि लड़ाई झगड़े का औसत निकाला जाये तो बच्चे जितना समय साथ रहते हैं उसके हर 5 मिनिट के बाद लड़ते हैं और उनका झगड़ा औसतन 10 सेकेंड चलता है।

4- झगडे के बाद इनके व्यव्हार में प्रसन्नता और मधुरता अधिक दिखाई देती है।

5- तीन वर्ष तक शारीरिक लड़ाई झगड़ा अपनी चरम सीमा पर होता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह कम होता चला जाता है। धीरे-धीरे ये रूप भी बदल जाता है और लडाई शब्दों द्वारा होनी शुरू हो जाती है, जैसे- ताने देना, गाली देना या शब्दों द्वारा चिढ़ाना।

6- लडके लडकियों के मुकाबले में अधिक लड़ते हैं।

6-

एक दिन मैंने शुक्ला जी की पत्नी से पूछा कि क्या आपके बच्चे भी लड़ते हैं? उन्होंने तपाक से उत्तर दिया-बच्चे किसके नहीं लड़ते, लेकिन मैं तो अच्छी तरह समझ गयी हूँ इसलिये ज्यादा परेशानी नहीं होती। बच्चों के आपसी सहज झगड़ों का फैसला अपने ही आप करने देती हूँ। अब मेरे बच्चों को मालूम हो गया है कि हमारे बीच मम्मी-पापा दखल नहीं देंगे तो वह अपनी समस्यायें अपने आप सुलझा लेते हैं। बार-बार भाग कर मुझे तंग नहीं।

बच्चों में परिचय का दायरा बढने पर जहाँ दोस्ती की संभावनायें बढती हैं वहाँ आपसी सम्बन्धों को लेकर सहज लड़ाई झगड़े के विषय भी बढ़ जाते हैं। कई बार बच्चों के लड़ाई झगड़े उनके रोब और ईर्ष्या के प्रदर्शन भी होते हैं।

यदि माता-पिता बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बितायें, उनकी रुचियों और खेलों में सक्रिय भाग लें तो उनकी सारी समस्याओं का बहुत आसनी से निपटारा हो सकता है।

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