अंध विश्वास,.....कहीं रोक न दे शिशुओं का विकास--

Thursday, June 16, 2011



हमारा भारत सपेरों और मदारियों के देश से विख्यात है।यहाँ कदम कदम पर ताबीजों, टोटकों और अन्ध विश्वासों का साम्राज्य है। कभी कभी इन अंध विश्वासों की कितनी बडी कीमत हमें चुकानी पडती है कि हम कल्पना भी नही कर सकते। कुछ समाजिक कुप्रथायें हमारे नौनिहालों के स्वास्थ्य से कितनी बडी खिलवाड़ करती हैं..आइये उल्लेख करते हैं---

· नवजात शिशु की नाल को गाँव की अप्रशिक्षित दाईयाँ गन्दे चाकू ये ब्लेड से काट देती हैं ऐसा नहीं करना चाहिये इससे सेप्टीसीमिया की संभावना बनी रहती है। नाल को स्वच्छ जीवाणु रहित वस्तु से ही काटना चाहिये तथा एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग करनी चाहिये।

· ये भी गलत धारणा है कि प्रसव के तीन दिन तक बच्चे को माँ का दूध नहीं पिलाना चाहिये। अवश्य पिलाना चाहिये क्यों कि प्रसवोपरांत तीन दिन तक पोषण तत्वों से भरपूर कोलोस्ट्रोम निकलता है जिसमें भरपूर रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है।

· गाँव की औरतों में ये धारणा है कि प्रसव के 3-4 दिन तक अगर दूध नहीं उतरा तो फिर दूध नहीं आयेगा। इस तरह का विचार प्रसूत के सामने नहीं रखना चहिये। इससे उसके मस्तिष्क पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ना आरंभ हो जाता है। माँ को सदैव प्रोत्साहित करना चाहिये।


· आधुनिक माताओं में ये फैशन चल गया है कि यदि बच्चे को स्तनपान कराया तो उनकी फिगर बिगड़ जायेगी। ये चलन बच्चे के लिये हितकारी नहीं है। किसी अन्य दूध गाय भैंस या डिब्बे से माँ का दूध सर्वोत्तम है।

· छोटी माता, खसरा इत्यादि रोगों में ये अंध विश्वास है कि इनका कोई इलाज नही है, डाक्टरी इलाज कराया तो देवी माँ नाराज़ हो जाएंगी। जब कि दोनों रोग वाइरस जनित हैं। इनका कोई विशेष उपचार तो नहीं लेकिन लाक्षणिक चिकित्सा करके बच्चे को स्वस्थ किया जा सकता है। लेकिन इस प्रकार के अंध विश्वास के चलते जाने कितने बच्चों को मौत के मुँह में जाते हुये देखा है।

· ये भी गलत परिपाटी है कि सूखारोग में सिर्फ तैल मालिश ही उसका उपचार है। सूखारोग का उपचार अच्छा भोजन है, भोजन की कमी से ये रोग होता है।

· प्राचीन कल में और आज भी बच्चे को रोते से सुलाने के लिये माँतायें अफीम का प्रयोग करती हैं।अफीम देने से बच्चे के मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अधिक मात्रा में देने से मौत तक हो जाती है।

· दांतों के समय दस्त लगने से ये मान्यता है कि इलाज नहीं करान चाहिये। जब कि असलियत यह है कि मसूड़ों में खुजलाहट के कारण बच्चा बार बार उँगली या गंदी वस्तुयें मुँह में डालता है जिससे संक्रमण पेट में जाकर दस्त पैदा करते हैं, इस लिये उपचार आवश्यक है।

· ये भी सोचना ठीक नहीं है कि ग्लूकोज पिलाने से सर्दी हो जायेगी। दस्तों के समय इसे पिलाना अति आवश्यक है। चाहे गर्मी हो या सर्दी।

· आमतौर पर ये मानना है कि यदि बालक का पेट बडा हो गया है तो उसका जिगर बढ गया है, इसलिये उसे कम भोजन देने लगते हैं। ऐसी स्थिति में अपने आप इलाज न करके किसी अच्छे बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिये।

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