क्या करें, नींद नहीं आती.........

Thursday, June 16, 2011


जिस तरह शरीर के लिये भोजन की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार अच्छे स्वास्थ्य के लिये अच्छी नींद का होना भी आवश्यक है। आज इतनी भागदौड की ज़िन्दगी में शरीर में अनेक रौगों के कारण, मानसिक क्लेश, चिंताओं के कारण आम आदमी की आखों से नींद दूर होती जा रही है। निरंतर सुख सुविधाओं में रहने के कारण व्यक्ति अत्यंत प्रमादी और आलस्य युक्त होता जा रहा है। रात को देर तक जगना और सुबह देर तक सोना आज फैशन में आ गया है। आज टेलीवीज़न और मोबाइल ने हमारे नौनिहालों की भी आँखों की नींद चुराली है।

आमतौर पर जब ज्ञानवाही स्रोतस कफ के द्वारा या कफ के समान गुणों वाले आहार रस के द्वारा आवृत हो जाते हैं या परिश्रम करते करते आखें, हाथ, पैर तथा मन एवं बुध्दि अपने अपने कर्मों से उपरत हो जाते हैं तब प्राणी को निद्रा आती है।

नींद के सात भेद हैं----

1. काल के अनुसार स्वभाव से ही प्रतिदिन आने वाली

2. आमय अर्थात बीमारियों के कारण होने वाली जैसे सन्निपात ज्वर आदि में कभी कभी देखी जाती है

3. चित्त के खेद से मानसिक परिश्रम से होने वाली

4. देह के खेद से शारीरिक परिश्रम से होने वाली

5. कफ की वृध्दि से होने वाली

6. आगंतुकी कोइ काम धंधा न होने पर आने वाली

7. तमोभवा तमो गुण की अधिकता से होने वाली

तमो गुणियों को दिन रात नींद चढी रहती है। वे जब तब सोते ही रहते हैं। रजों गुणियों को जब कोई काम नही होता तभी नींद आजाती है और सत्वगुणियों को केवल आधी रात मे नीद आती है वे 11-12 बजे सोते हैं और सुबह 3-4 बजे जाग जाते हैं जैसे सुना जाता है कि लक्ष्मण 14 वर्षों से नही सोये थे। अर्जुन को नींद पर अधिकार था। महात्मा गांधी 5-7 मिनट का समय होने पर भी सो जाते थे और जब चाहते जग जाते थे।

आयुर्वेद मतानुसार नींद असमय में या अधिक सेवन की जाये तो सुख एवं आयु का क्षय रहता है। इसके विपरीत यदि युक्ति पूर्वक नींद का सेवन किया जाये तो स्वास्थ्य बनता है, आयु बढती है। रात में ज्यादा जागने से शरीर में रूक्षता बढ जाती है और दिन में सोने से स्निग्धता बढती है और बैठे बैठे झपकी लेने से न तो रूक्षता बढती है और न ही स्निग्धता। लेकिन ग्रीष्मऋतु में दिन में सो लेना अहितकर है क्यों कि इस ऋतु में वायु का संचय होता है आदान काल होने के कारण शरीर मे रूक्षता बढी रहती है और रातें भी छोटी रहती हैं। इसके अलावा जो व्यक्ति अत्यधिक बोलते हों, घोडा या गाडी आदि की सवारी करते हो, पैदल चलते हों, शराब अधिक पीते हों, अधिक मैथुन करते हों, मज़दूरी करते हों, क्रोध-शोक-भय से थके हों, सांस, हिचकी, अतिसार रोग से पीडित हों, बाल, वृध्द तथा दुर्बल हों, क्षय रोग या उदर रोग से पीडित हों अजीर्ण रोग वाले, चोट से चुटैल हों य़ा जिन्हे दिन में सोना अनुकूल हो गया हो उन सब को दिन मे सो लेना चाहिये। इससे कुछ बढा हुआ कफ उनके अंगों को पुष्ट कर देता है।

किसी कारण वश अगर रात में 6 घंटा जगना पड जाय तो दिन मे मात्र 4 घंटे सो कर उस जागरण से होने वाली क्षति को रोका जा सकता है जो लोग मोटे हैं और प्रतिदिन घी दूध का सेवन करते हैं उन्हे दिन मे कभी नहीं सोना चाहिये। जो लोग सर्प विष या संखिया आदि विष से पीडित हों अथवा गले के रोगों से ग्रसित हों उन्हे रात में भी नही सोना चाहिये। सोने से विष का प्रभाव बढ जाता है और गले के रोग कफज होने के कारण बढ जाते हैं।

दिन में अधिक सोने से होने वाले रोग

हलीमक, सिर मे भारीपन, शरीर मे चिपचिपापन, ज्वर, चक्कर आना, बुद्धि दौर्बल्य, भूख कम लगना, अरुचि मिचली आना, ज़ुकाम, आधा सीसी का दर्द, खुजली एवं दाद तथा अति स्थूलता आदि रोग हो जाते हैं।

अच्छी नींद के लिये क्या करें ?---

आमतौर पर वृद्धावस्था में या क्षयरोग में, गुर्दे के दर्द में, उन्माद आदि में या जिनके शरीर मे वायु दोष की वृध्दि हो गयी है उनको नीद बहुत कम आती है लेकिन आजकल तो अच्छे भले लोग जानबूझ कर देर से सोने के आदी हो गये हैं जब सुबह उठते हैं तो आफिस जाने में देर हो जाती है अपने बौस की डाँट फ़टकार का भय रहता है। पूरे दिन शरीर मे अंगडाइयाँ सी आती रहती हैं, सिर में भारीपन चक्कर आते हैं तथा भोजन न पचने के कारण खट्टी-खट्टी डकारें भी आने लगती हैं। इसलिये उक्त सब हानि लाभों को ध्यान मे रखते हुये रात मे यथा समय पर निद्रा लेनी चाहिये और आवश्यकता के अनुसार जब अनुकूल हो तब निद्रा लेनी चाहिये इस प्रकार नींद से लाभ होता है।

यदि नीद थोडी आती है या आती ही नही है तो विशेषत: भैंस का दूध , ईख का रस, गुड़ एवं पीठी के पदार्थ, शालि चावल के बने पदार्थ, उड्द की दाल, रबडी, खोया तथा शराब का सेवन करना चाहिये।

सिर और पैर के तलवों की मालिश तथा उबटन करने से, स्नान करने से भी अच्छी नींद आती है। कान मे गुनगुना तेल डालने से, आँखों का तर्पण करने से भी नीद मे आराम मिलता है। अच्छी नींद के लिये हवादार कमरा तथा साफ सुथरी गुदगुदी शैय्या भी बहुत आवश्यक है। आयुर्वेदोक्त अष्ठवर्ग एवं मुलेठी आदि जीवनीय द्रव्यों से संस्कारित घृत तथा ऊपर से दूध पीने से नींद आने लगती है। किसी काम की निवृत्ति के बाद हल्की हल्की आवाज़ मे संगीत सुनना भी निद्रा सुख देता है। अनेक प्रकार के व्यसनों से दूर रहें जितना प्रभु दे उसमे संतोष करें, लोभ लालच नहीं करें, ख्याली पुलाव ना बनावें तथा अपने प्रिय जन का आलिंगन कर लेट जायें तो नींद आने से कोई रोक नहीं पायेगा।

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