द्राक्षा एक श्रेष्ठ प्राकृतिक मेंवा है, इसका स्वाद मीठा होता है। इसकी गणना उत्तम फलों की कोटि में की जाती है। इसकी बेल होती है। बेल का रंग लालिमा लिये हुए रहता है। द्राक्ष की बेल 2-3 वर्ष की होने पर फलने-फूलने लगती है।
खासकर फरवरी-मार्च के महीनों में बाजार में हरी द्राक्ष अधिक मात्रा में दिखाई देती है।
द्राक्ष 2 तरह की होती है- पहला काला और दूसरा सफेद। सफेद द्राक्ष अधिक मीठा होता है।
काली द्राक्ष सभी रोगों में लाभकारी और गुणकारी होती है। काली द्राक्ष का दवा में अधिक प्रयोग होता है। बेदाना, मुनक्का और किशमिश- ये द्राक्ष की प्रमुख किस्में है।
किशमिश अधिकतर बेदाना जैसी ही, परन्तु कुछ छोटी होती है। द्राक्ष गर्म देशों के लोगों की भूख और प्यास को शान्त करने में उपयोगी है। यह पित्तशामक और रक्तवर्धक है।
हरी द्राक्ष कफकारक मानी जाती है परन्तु सेंधानमक अथवा नमक के साथ सेवन से कफ होने का खतरा नहीं होता है।
सूखी द्राक्ष की अपेक्षा हरी द्राक्ष कुछ खट्टी परन्तु अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी होती है। द्राक्ष काजू के साथ नाश्ते के रूप में ली जाती है।
पुराने कब्ज वाले लोग यदि रोज ज्यादा द्राक्ष खाएं तो इससे कब्ज दूर होती है।
जिन लोगों को पित्त प्रकोप हुआ हो वे यदि द्राक्ष का सेवन करें तो उनका पित्तप्रकोप शान्त होता है, शरीर में होने वाली जलन दूर हो जाती है तथा उल्टी भी बंद हो जाती है। यदि शरीर कमजोर हो और वजन न बढ़ता हो, आंखों में धुंधलापन महसूस होता है, जलन रहती हो तो द्राक्ष का सेवन करने से यह सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
द्राक्ष में विटामिन `सी´ होता है जिसके कारण स्कर्वी और त्वचा रोग नष्ट हो जाते हैं। द्राक्ष खाने से शरीर में स्फूर्ति व ताजगी आती है।
खट्टी द्राक्ष रक्तपित्त करती है। हरी द्राक्ष, भारी, खट्टी, रक्तपित्तकारक, रुचिकारक, उत्तेजक और वातनाशक है। पकी द्राक्ष मल को साफ करने वाली, आंखों के लिए लाभदायक, शीतल रस में मीठा, आवाज को अच्छा बनाने वाली, मल-मूत्र को बाहर निकालने वाली, पेट में गैस करने वाली, वीर्यवर्धक और कफ तथा रुचि पैदा करने वाली है।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1.)_ सिर की गर्मी :
20 ग्राम द्राक्ष को गाय के दूध में उबालकर रात को सोने के समय पीने से सिर की गर्मी निकल जाती है।
2.)_ मूर्च्छा (बेहोशी) :
द्राक्ष को उबाले हुए आंवले और शहद में मिलाकर रोगी को देने से मूर्च्छा (बेहोशी) के रोग में लाभ मिलता है।
3.)_ सिर चकराना :
लगभग 20 ग्राम द्राक्ष पर घी लगाकर रोजाना सुबह इसको सेवन करने से वात प्रकोप दूर हो जाता है। यदि कमजोरी के कारण सिर चकराता हो तो वह भी ठीक हो जाता है।
4.)_ आंखों की गर्मी व जलन :
लगभग 10 ग्राम द्राक्ष को रात में पानी में भिगोकर रखे। इसे सुबह के समय मसलकर व छानकर और चीनी मिलाकर पीने से आंखों की गर्मी और जलन में लाभ मिलता है।
5.)_ अम्लपित :
20 ग्राम सौंफ व 20 ग्राम द्राक्ष को छानकर और 10 ग्राम चीनी मिलाकर थोड़े दिनों तक सेवन करने से अम्लपित, खट्टी डकारें, खट्टी उल्टी, उबकाई, आमाशय में जलन होना, पेट का भारीपन के रोग में लाभ पहुंचता है।
6.)_ खांसी :
बीज निकाली हुई द्राक्ष, घी और शहद को एक साथ चाटने से क्षत कास (फेफड़ों में घाव उत्पन्न होने के कारण होने वाली खांसी) में लाभ होता है।
7.)_ बलवर्द्धक :
20 ग्राम बीज निकाली हुई द्राक्ष को खाकर ऊपर से आधा किलो दूध पीने से भूख बढ़ती है, मल साफ होता है तथा यह बुखार के बाद की कमजोरी को दूर करता है और शरीर में ताकत पैदा करता है।
8.)_ कब्ज :
10-10 ग्राम द्राक्ष, कालीमिर्च, पीपर और सैंधा नमक को लेकर पीसकर कपड़े में छानकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें 400 ग्राम काली द्राक्ष मिला लें और चटनी की तरह पीसकर कांच के बर्तन में भरकर सुरक्षित रख लें। इसकी चटनी `पंचामृतावलेह´ के नाम से प्रसिद्ध है। इसे आधा से 20 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से अरुचि, गैस, कब्जियत, दर्द, मुंह की लार, कफ आदि रोग दूर होते है।
9.)_ तृषा व क्षय रोग :
लगभग 1200 मिलीलीटर पानी में लगभर 1 किलो शक्कर डालकर आग पर रखें। उबलने के बाद इसमें 800 ग्राम हरी द्राक्ष डालकर डेढ़ तार की चासनी बनाकर शर्बत तैयार कर लें। यह शर्बत पीने से तृषा रोग, शरीर की गर्मी, क्षय (टी.बी) आदि रोगों में लाभ होता है।
10.)_ खांसी में खून आना :
10 ग्राम धमासा और 10 ग्राम द्राक्ष को लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से उर:शूल के कारण खांसी में खून आना बंद हो जाता है।
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